Tuesday, August 25, 2009

एक भाषा हुआ करती
जितनी बार मैं लिखना चाहता हूं `आंसू´ से मिलता जुलता कोईशब्दाहर
बार बहने लगती है रक्त की धार
एक भाषा है जिसे बोलते वैज्ञानिक और समाजविद और तीसरे दर्जे के जोकरऔर
हमारे समय की सम्मानित वेश्याएं और क्रांतिकारी सब शर्माते हैंजिसके व्याकरण और हिज्जों की भयावह भूलें हीकुलशील, वर्ग और नस्ल की श्रेष्ठता प्रमाणित करती हैं
बहुत अधिक बोली-लिखी, सुनी-पढ़ी जाती,गाती-बजाती एक बहुत कमाऊ और बिकाऊ बड़ी भाषादुनिया के सबसे बदहाल और सबसे असाक्षर, सबसे गरीब और सबसे खूंख़ार,सबसे काहिल और सबसे थके-लुटे लोगों की भाषा,अस्सी करोड़ या नब्बे करोड़ या एक अरब भुक्खड़ों, नंगों और ग़रीब-लफंगों की जनसंख्या की भाषा,वह भाषा जिसे वक़्त ज़रूरत तस्कर, हत्यारे, नेता, दलाल, अफसर, भंड़ुए, रंडियां और कुछ जुनूनी नौजवान भी बोला करते हैं
वह भाषा जिसमें लिखता हुआ हर ईमानदार कवि पागल हो जाता हैआत्मघात करती हैं प्रतिभाएं`ईश्वर´ कहते ही आने लगती है जिसमें अक्सर बारूद की गंध
जिसमें पान की पीक है, बीड़ी का धुआं, तम्बाकू का झार,जिसमें सबसे ज्यादा छपते हैं दो कौड़ी के मंहगे लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रिय अखबारसिफ़त मगर यह कि इसी में चलता है कैडबरीज, सांडे का तेल, सुजूकी, पिजा, आटा-दाल और स्वामी जी और हाई साहित्य और सिनेमा और राजनीति का सारा बाज़ार
एक हौलनाक विभाजक रेखा के नीचे जीने वाले सत्तर करोड़ से ज्यादा लोगों केआंसू और पसीने और खून में लिथड़ी एक भाषापिछली सदी का चिथड़ा हो चुका डाकिया अभी भी जिसमें बांटता है
सभ्यता के इतिहास की सबसे असभ्य और सबसे दर्दनाक चिटि्ठयां
वह भाषा जिसमें नौकरी की तलाश में भटकते हैं भूखे दरवेशऔर एक किसी दिन चोरी या दंगे के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिए जाते हैंजिसकी लिपियां स्वीकार करने से इंकार करता है इस दुनिया का समूचा सूचना संजालआत्मा के सबसे उत्पीड़ित और विकल हिस्से में जहां जन्म लेते हैं शब्दऔर किसी मलिन बस्ती के अथाह गूंगे कुएं में डूब जाते हैं चुपचापअतीत की किसी कंदरा से एक अज्ञात सूक्ति को अपनी व्याकुल थरथराहट में थामे लौटता है कोई जीनियस और घोषित हो जाता है सार्वजनिक तौर पर पागलनष्ट हो जाती है किसी विलक्षण गणितज्ञ की स्मृतिनक्षत्रों को शताब्दियों से निहारता कोई महान खगोलविद भविष्य भर के लिए अंधा हो जाता हैसिर्फ हमारी नींद में सुनाई देती रहती है उसकी अनंत बड़बड़ाहट...मंगल..शुक्र..बृहस्पति...सप्त-ॠषि..अरुंधति...ध्रुव..हम स्वप्न में डरे हुए देखते हैं टूटते उल्का-पिंडों की तरहउस भाषा के अंतरिक्ष सेलुप्त होते चले जाते हैं एक-एक कर सारे नक्षत्र
भाषा जिसमें सिर्फ कूल्हे मटकाने और स्त्रियों कोअपनी छाती हिलाने की छूट हैजिसमें दण्डनीय है विज्ञान और अर्थशास्त्र और शासन-सत्ता से संबधित विमर्शप्रतिबंधित हैं जिसमें ज्ञान और सूचना की प्रणालियांवर्जित हैं विचार
वह भाषा जिसमें की गयी प्रार्थना तकघोषित कर दी जाती है सांप्रदायिकवही भाषा जिसमें किसी जिद में अब भी करता है तप कभी-कभी कोई शम्बूकऔर उसे निशाने की जद में ले आती है हर तरह की सत्ता की ब्राह्मण-बंदूक
भाषा जिसमें उड़ते हैं वायुयानों में चापलूसशाल ओढ़ते हैं मसखरे, चाकर टांगते हैं तमगेजिस भाषा के अंधकार में चमकते हैं किसी अफसर या हुक्काम या किसी पंडे के सफेद दांत औरतमाम मठों पर नियुक्त होते जाते हैं बर्बर बुलडॉग
अपनी देह और आत्मा के घावों को और तो और अपने बच्चों और पत्नी तक से छुपाताराजधानी में कोई कवि जिस भाषा के अंधकार मेंदिन भर के अपमान और थोड़े से अचार के साथखाता है पिछले रोज की बची हुई रोटियांऔर मृत्यु के बाद पारिश्रमिक भेजने वाले किसी राष्ट्रीय अखबार या मुनाफाखोर प्रकाशक के लिएतैयार करता है एक और नयी पांडुलिपि
यह वही भाषा है जिसको इस मुल्क में हर बार कोई शरणार्थी, कोई तिजारती, कोई फिरंगअटपटे लहजे में बोलता और जिसके व्याकरण को रौंदतातालियों की गड़गड़ाहट के साथ दाखिल होता है इतिहास मेंऔर बाहर सुनाई देता रहता है वर्षो तक आर्तनाद
सुनो दायोनीसियस, कान खोल कर सुनोयह सच है कि तुम विजेता हो फिलहाल, एक अपराजेय हत्यारेहर छठे मिनट पर तुम काट देते हो इस भाषा को बोलने वाली एक और जीभतुम फिलहाल मालिक हो कटी हुई जीभों, गूंगे गुलामों और दोगले एजेंटों केविराट संग्रहालय केतुम स्वामी हो अंतरिक्ष में तैरते कृत्रिम उपग्रहों, ध्वनि तरंगों,संस्कृतियों और सूचनाओंहथियारों और सरकारों के
यह सच है
लेकिन देखो,हर पांचवें सेकंड पर इसी पृथ्वी पर जन्म लेता है एक और बच्चाऔर इसी भाषा में भरता है किलकारी
औरकहता है - `मां ´ !
hi i' m neera a copy writer and visualiser. ur welcom to Chand..